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बेकरार करके हमें यूं न जाइए.........


एक संगीतकार के तौर पर उनका आगमन तब हुआ था जब शंकर जयकिशन, नौशाद, रामचन्द्र चितलकर, एस.डी. बर्मन, ओ.पी. नैयर आदि संगीतकारों का बोलबाला था। इतनी भीड़ में उन्हें पांव जमाने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ा। उन्होंने डाकू की लड़की, जागृति, नागिन, यहूदी की लड़की, गर्लफ्रेंड, शर्त, बंदिश, दुर्गेश-नंदिनी, एक ही रास्ता, मिस मेरी, दुनिया झुकती है, बीस साल बाद, साहब, बीबी और गुलाम, कोहरा, अनुपमा, खामोशी समेत करीबन साठ हिंदी फिल्मों में संगीत दिया।

अमित कुमार ’राज‘ 24 Sep 2021 298

पार्श्वगायक हेमंत कुमार की पुण्यतिथि - 26 सितम्बर

एक बार सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका लता मंगेशकर ने कहा था - हेमंत दा जब गाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानों मंदिर में बैठा कोई पुजारी भजन गा रहा हो। जी हां, हिंदी फिल्मी जगत में सहगल, मुकेश, रफी, किशोर जैसे गायक भी थे जिन्होंने भारतीय फिल्म संगीत को अपने देश में नहीं, कई बाहरी मुल्कों में भी जन-जन तक पहुंचाया पर हेमंतदा वो गायक थे जिनके गानों में गुलाब की सी कोमलता और ताजगी होती थी।

हेमंत दा, जिनका पूरा नाम हेमंत कुमार कालिदास मुखोपाध्याय था, का जन्म 6 जून 1920 को बनारस में हुआ था। जैसा कि सभी जानते हैं कि बंगाली परिवारों में कला एवं संगीत को विशेष महत्व दिया जाता है। उसी तरह हेमंत दा के परिवार में भी संगीत का थोड़ा-बहुत माहौल था। संगीत में इनकी रूचि बचपन से थी। वे संगीत का अभ्यास करते रहे और जब उनकी उम्र 17 वर्ष की थी, पहली बार उन्हें रेडियो पर गाने का मौका मिला। धीरे-धीरे इन्हें प्रसिद्धि मिलती गई।

कालांतर में ये बंगला फिल्मों से जुड़ गए। वो वक्त था सन चालीस का और फिल्म थी ’नेमाई संन्यास‘। इसके बाद वे लगातार छः वर्ष तक पार्श्वगायन ही करते रहे। छः वर्ष के बाद सन् 46 में वे फिल्म ’पूर्वराग‘ में बतौर संगीतकार आए। बंगला फिल्मों मे अब तक वे प्रसिद्ध हो चले थे। कहा गया है कि सच्ची प्रतिभा को कोई रोक नहीं सकता। इस प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति को सिर्फ बंगला फिल्मों तक ही प्रसिद्धि गवारा न हुई।

सन् 1952 की बात है। हेमेन गुप्ता फिल्मिस्तान की एक फिल्म डायरेक्ट कर रहे थे। फिल्म थी ’आनंदमठ‘। इसके गीतकार थे सुप्रसिद्ध बंगला कवि बंकिम चंद्र चटर्जी, हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र। हेमंत कुमार को बतौर गायक और संगीतकार इस फिल्म में मौका मिला। हिंदी में यह उनकी पहली फिल्म थी। सन् 52 में से हिंदी फिल्म में बतौर संगीतकार जो सफर शुरू हुआ, उस पर विराम लगा सन् 1979 में।

एक संगीतकार के तौर पर उनका आगमन तब हुआ था जब शंकर जयकिशन, नौशाद, रामचन्द्र चितलकर, एस.डी. बर्मन, ओ.पी. नैयर आदि संगीतकारों का बोलबाला था। इतनी भीड़ में उन्हें पांव जमाने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ा। उन्होंने डाकू की लड़की, जागृति, नागिन, यहूदी की लड़की, गर्लफ्रेंड, शर्त, बंदिश, दुर्गेश-नंदिनी, एक ही रास्ता, मिस मेरी, दुनिया झुकती है, बीस साल बाद, साहब, बीबी और गुलाम, कोहरा, अनुपमा, खामोशी समेत करीबन साठ हिंदी फिल्मों में संगीत दिया।

उनके संगीत में शास्त्राीय धुनों की झलक स्पष्ट दिखती है और यही उनकी खासियत थी। अपनी इसी खासियत को बरकरार रखते हुए बंगाल के सुप्रसिद्ध रविन्द्र संगीत का मिश्रण कर उन्होंने संगीत की जो रचना की मानो वह संगीत न होकर जादू हो गया जो आज भी जनमानस के स्मृति पटल पर अमिट छाप छोड़े हुए हैं।

एक गायक के रूप में उनकी आवाज काफी गंभीर और मधुर थी और यही कारण था कि हेमंत दा उन संगीतकारों के पसंदीदा गायक बन गए जिन्होंने संगीत की दुनियां में एक सुनहरा इतिहास रचा। सचिन देव बर्मन, नौशाद, सी, रामचन्द्र, रोशन, रवि, सलिल चौधरी जैसे महान संगीतकारों के अधिकांश गीत ऐसे हैं जिनमें हेमंत दा ने अपनी आवाज से जान फूंकी।

साथ ही हेमंत दा ने कई गायिकाओं के साथ युगल गाने गाए जैसे लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त आदि पर ज्यादातर गाने लता एवं आशा के साथ हैं। लता के साथ गाए गीतों में याद किया दिल ने (पतिता), उम्र हुई तुमसे (बहुरानी), इक बार जरा फिर कह दो (बिन बादल बरसात), इतना तो कह तो (सहेली), तुम्हें याद होगा (सट्टा बाजार), नींद न मुझको आए (पो.बा. 999), देखो वो चांद (शर्त) आदि कई ऐसे गीत हैं जिन्होंने अपने काल में सफलता के परचम लहराए।

हेमंत दा के गानों में विविधता थी। जहां उन्होंने गुरुदत्त जैसे संजीदा कलाकार के लिए ’जाने वो कैसे लोग थे‘ जैसे गीतों को स्वर दिया, वहीं देवानंद और विश्वजीत जैसे रंगीनमिजाजी कलाकारों के लिए ’है अपना दिल तो आवारा‘ और ’जरा नजरों से कह दो जी‘ जैसे गाने गाए।

उनके फिल्म जीवनकाल में उन्हें कई पुरस्कारों एवं सम्मानों से नवाजा गया। वर्ष 1954 में फिल्म ’नागिन‘ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत हेतु फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। रविन्द्र भारती विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डाक्टरेट की उपाधि दी गई। बंगलादेश के ’माइकल मधुसुदन दत्त‘ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


सन् 84 में भारत सरकार द्वारा पदमश्री के लिए उनके नाम की घोषणा की गई थी पर उन्होंने ’पदमश्री‘ लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने बंगला एवं हिंदी फिल्मों के अलावा भोजपुरी फिल्में ’बलमा बड़ा नादान‘ और आकल बसंत बहार एवं मराठी फिल्म ’नाइकीणीया सजा 1950‘ में संगीत दिया था। बतौर संगीतकार उनकी अंतिम फिल्म ’लव इन कनाडा। 1979 थी जिसके निर्देशक एस. रामनाथन थे।

उनके द्वारा संगीतबद्ध फिल्म ’नागिन‘ आज भी संगीत की दृष्टि से अद्वितीय फिल्म है। इस फिल्म के संगीत की लहरी से शायद ही कोई कूचा, गांव या कोई शहर बचा हो। ’नागिन‘ में दिया गया बीन म्यूजिक आज भी मन में सनसनी भर देता है। इस फिल्म का संगीत आज भी नये संगीतकारों के लिए चुनौती है।

आज हेमंत दा नहीं हैं पर अपने गीतों और संगीत के जरिये आज भी अपनी उपस्थिति का अहसास कराते रहते हैं और आगे भी यह उपस्थिति यथावत बरकरार रहेगी


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